मुग़ल बादशाह औरंगजेब आज ही के दिन 3 नवंबर 1618 को गुजरात के दाहोद में पैदा हुए।
मुग़ल बादशाह औरंगजेब आज ही के दिन 3 नवंबर 1618 को गुजरात के दाहोद में पैदा हुए। शाहजहां और मुमताज़ के तीसरे बेटे थे औरंगजेब, पैदाइश के वक़्त शाहजहां बादशाह नही थे वो एक सूबेदार के ओहदे पर मिलिट्री कैम्पेन में मशगूल रहते थे इस वजह से औरंगजेब की परवरिश दादी नूरजहां के पास लाहौर में हुई।
26 मई 1628 को शाहजहां बादशाह बने तो औरंगजेब आगरा के किले में आ गए और यही पर अरबी और फ़ारसी की तामील मुक़म्मल हुई, औरंगजेब हाफ़िज़ ए क़ुरआन और मुहद्दिस भी थे। अपने तीनो भाइयो में सबसे तेज़ और कुशल योद्धा थे।
28 मई 1633 को हाथियों की लड़ाई के दौरान पागल हाथी के बीच औरंगजेब फस गए थे तब खुद ही औरंगजेब ने अपनी जान बचाई थी हाथी के सूंड के सहारे चढ़कर भाले से ज़ोरदार वार कर मार गिराया था। वहाँ उनके भाई मौज़ूद थे लेकिन औरंगजेब को बचाने की कोशिश नही की औरंगजेब ने इसके बाद कहा:
"अगर ये हाथी आज मुझे मार भी देता तो भी कोई ज़िल्लत की बात नही थी मौत बरहक़ है एक दिन ये ज़िंदगी पर पर्दा डाल ही देगी मेरे भी और एक बादशाह पर भी। लेकिन आज मेरे भाइयों ने मेरे साथ जो किया है वो बेहद शर्मनाक है"
ये वही दिन था जहां से औरंगजेब का कद आम जनता में अपने भाइयों से बहुत ऊंचा हो गया था। सिर्फ 16 साल की उम्र सैन्य कमांडर बने और 17 साल की उम्र में बुंदेलखंड जीत लिया एक के बाद एक फ़तह हासिल करते गए और हिंदुस्तान की सरहद को अफ़ग़ानिस्तान से म्यांमार तक फैला दिया।
“जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है”
 -ये अल्फाज़ मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के ऊपर सबसे ज्यादा फिट बैठते हैं. जिस शख्स की कभी ‘तहज्जुद’ की नमाज़ क़ज़ा नहीं होती थी. जिसके शासनकाल में हिन्दू मनसबदारों की संख्या सभी मुग़ल बादशाहों की तुलना में सबसे ज्यादा थी. जिसने कट्टर मुसलमान होते हुए भी कई मंदिरों के लिए दान और जागीरें दीं. जिसने शिवाजी को क़ैद में रखने के बावजूद मौत के घाट नहीं उतारा, जबकि ऐसा करना उनके लिए मुश्किल नहीं था. जो खुद को हुकूमत के खजाने का सिर्फ ‘चौकीदार ‘समझता था (मगर वह आजकल के चौकीदारों की तरह नहीं थे) और अपनी जीविकोपार्जन के लिए वह टोपियाँ सिलता और कुरान शरीफ के अनुवाद (Translation) करते थे.
औरंगजेब रहमतुल्लाह अलैह ऐसे बादशाह है जिसके साथ इतिहास और तास्सुबी इतिहास कारों ने कभी न्याय नहीं किया. एक ऐसा बादशाह, जिसे भारतीय इतिहास में सब से ज्यादा बदनाम किया गया है, मगर जो अपने खानदान के तमाम बादशाहों में सबसे ज्यादा मुत्तकी, परहेज़गार, इंसाफपसंद, खुदा से डरने वाले, हलाल रिज़क खाने वाले और तहज्जुदगूज़ार बन्दे थे. उन बादशाह का नाम है – हज़रत औरंगज़ेब (रहमतुल्लाह अलैह), जिनका मज़ार पाक औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में है.
मुंशी इश्वरी प्रसाद अपनी मशहूर किताब ‘तारीखे हिन्द’ में लिखते हैं – परमात्मा की शान है कि औरंगज़ेब जितना रिआया का खैर ख्वाह था, इतिहास में उसे उतना ही ज्यादा बदनाम किया गया है. कोई उसे ज़ालिम कहता है, कोई खुनी, मगर हकीक़त में वह ‘आलमगीर’ का ही लकब पाने का अधिकारी है.
भारत में मुसलमानों की हुकुमत करीब 600 साल तक रही. दिल्ली मुसलमानों की राजधानी थी. वहां हर तरह की ताकत मुसलमानों के हाथ में थी. अगर मुस्लिम बादशाह हिन्दुओं को तलवार केबल पर मुसलमान बनाना चाहते तो वे सबसे पहले दिल्ली और आसपास के हिदुओ को ही मुसलमान बनाते, क्युकी ऐसा करने से उनकी हुकुमत को भी एक तरह से सुरक्षा मिल जाती क्युकी आसपास कोई दुश्मन आबादी ही नहीं रह जाती जो हुकुमत के खिलाफ विद्रोह कर सके. मगर यह एक आश्चर्यजनक तथ्य हमें नज़र आता है कि दिल्ली और उसके आसपास 50 मील की आबादी हमेशा बहुसंख्यक हिन्दुओं की ही रही और वे भी खुशहाल और इज्ज़त के साथ रहते आये थे. यह बात पंडित सुन्दर लाला शर्मा ने ‘गाँधी की क़ुरबानी’ से सबक’ नामक लेख में व्यक्त किया है-
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हिन्दू धर्म के सिद्धांतों, कर्मकांडों का यथाविधि पालन करने वाले व्यक्ति को ‘समर्पित हिन्दू‘ कहा जाता है, कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों पर मजबूती से चलने वाले इंसान को ‘समर्पित कामरेड’ कहा जाता है, बुद्ध के आदर्शों पर चलने वाले भंते जी या बौद्ध को ‘समर्पित बौद्ध’ कहा जाता है. मगर इस्लाम के सिद्धांतों पर चलने वाले आदमी को ‘समर्पित मुसलमान‘ नहीं कहा जाता, बल्कि उसे ‘कट्टर मुसलमान‘ की उपाधि दी जाती है ? इसी भेदभाव का शिकार औरंगजेब जैसे बादशाह को भी होना पड़ा और आज तक उनके साथ ये लक़ब जुड़ा है कि वह एक कट्टर मुसलमान था, जो एक मन जनेऊ प्रतिदिन उतरवा कर ही खाना खाता था. जबकी इस बात के खंडन के लिए अँगरेज़ इतिहासकार प्रोफेसर अर्नाल्ड ने अपनी किताब ‘प्रीचिंग ऑफ़ इस्लाम‘ में लिखा है –“औरंगजेब के दौर के इतिहास में जहाँ तक मैंने तफ्तीश और पड़ताल की है,  पता चला है कि कहीं भी, किसी भी हिन्दू को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का कोई प्रमाण नहीं है।
 
 
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