पानीपत की दूसरी जंग इसी महीने 5 नवम्बर 1556 को मुग़ल बादशाह अकबर और हेमू के बीच लड़ी गयी थी


बात शुरू होती है 23 जुलाई 1555 को, मुग़ल सेना ने सिकन्दर शाह सूरी पर हमला कर के दिल्ली और आगरा को वापस अपने कब्जे में ले लिया था। सिकन्दर शाह सूरी में अपने पूर्वज शेरशाह सूरी जैसी क़ाबलियत नही थी सूर सल्तनत सेनापति हेमू सम्भलता था जो कि शेर शाह सूरी का खास दोस्त था।
हेमू एक तेज़ तर्रार कमांडर था एक एक कर सारे राज्य फ़तह करता गया बंगाल से शुरू किया और इटावा बदायूं सम्भल फ़तह करते हुए मुग़लों तक दिल्ली के तुगलकाबाद पहुंच गया। 7 अक्टूबर 1555 को यहां उसकी जंग मुग़ल सूबेदार तरगी बेग खान से हुई बेग खान को तुगलकाबाद छोड़ना पड़ा। हेमू ने खुद को दिल्ली का राजा घोषित कर दिया। इसी वजह से हेमू को दिल्ली का आखरी हिन्दू राजा भी कहते है हालांकि हेमू दिल्ली की सत्ता पर पर कुछ दिन ही बैठ पाए
ये खबर मुग़ल दरबार तक पहुचीं अक़बर की उम्र उस वक्त बहुत कम थी सेनापति बैरम खान ने फौरन जंग की तैयारी शुरु कर दी। हेमू की सेना से मुकाबला आसान नही था हेमू के पास 30 हज़ार सैनिक 500 हाथी और सैकड़ो अफ़ग़ान घुड़सवार थे।
5 नवम्बर को पानीपत में जंग शुरू हो गई हेमू के बांई तरफ उसका भांजा राम्या और और दाई तरफ शादी खान कक्कर आर्मी को लीड कर रहे थे। जबकि मुग़लों की तरफ से अली कुली खान और बैरम खान लीड कर रहे थे। मुग़लों की सेना कमज़ोर थी लेकिन वो बाबर की बनाई खास रड़नीति से जंग लड़ते थे अपनी सेना को 4 भाग में बांट कर सामने की तरफ गहरी खाई खोद देते जिससे हाथी मुग़ल सेना में घुस नही पाते थे।
मुग़ल सेना के ख़तरनाक तीरंदाजो ने हेमू की सेना को रोके रखा जंग में हेमू की तरफ से सेनापति शादी खान कक्कर और रामदास भगवान मारे गए लेकिन हेमू पीछे नही हटा जंग जारी रखी जीत के क़रीब पहुच गया। लेकिन एक तीरंदाज ने हेमू पर वार किया जो निशाने पर जा लगी। हेमू के गिरते हीउसकी सेना को लीड करने वाला कोई नही बचा उसके सैनिक पीछे भागने लगे मुगलों ने एक बार फिर से हरी हुई बाज़ी पलट दी और फ़तह हासिल की।
 
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