जब बादशाह यज्दगर्द ने चीनी बादशाह के पास अपना दूत भेजा और उससे अरबों के ख़िलाफ़ मदद मांगी , islamic stories in hindi
जब मुसलमानों ने किसरा के शहरों को जीता और अरब के बहादुरों ने अजम की ज़मीन पर क़दम रखा तो उनके बादशाह यज्दगर्द ने चीनी बादशाह के पास अपना दूत भेजा और उससे अरबों के ख़िलाफ़ मदद मांगी
- उस वक़्त बादशाहों का ये दस्तूर था कि नाज़ुक मौक़े पर एक बादशाह दूसरे बादशाह की मदद करता था - यज्दगर्द का ये दूत जब चीन से वापिस हुआ तो हदिया व तोहफ़ों से लदा-फंदा वापिस हुआ और यज्दगर्द से कहा कि बादशाह-ए-चीन ने मुझसे उन लोगों के हालात पूछे जो हमारे मुल्क पर कब्ज़ा किए हुए हैं, जब मैंने उनको तफ़सील (डिटेल) बताई तो उसने कहा--
"तुम उनकी तादाद कम और अपनी ज़्यादा बताते हो, इतनी कम तादाद इतनी ज़्यादा तादाद पर उसी वक़्त हावी हो सकती है जब उनमे खूबियाँ हों और तुममे बुराइयाँ और ख़राबियाँ हों |"
मैंने अर्ज़ किया आप और कुछ पूछना चाहें तो पूछें, मै आपको बताऊंगा | तब बादशाह-ए-चीन ने पूछा कि:
क्या वो वादा करने के बाद वादा पूरा करते हैं ? मैंने कहा, जी हाँ | फ़िर उसने पूछा अपने सरदारों (लीडर/रहबर) की इताअत के मामले में वो कैसे हैं ? मैंने जवाब दिया कि कोई कौम अपने अकाबिर और रहबर की इताअत की जो बेहतर से बेहतर मिसाल पेश कर सकती है, वो इस तरह अपने सरदार की इताअत करते हैं - फ़िर बादशाह ने पूछा कि:
वो कौन-कौन सी चीज़ों को हलाल समझते हैं और किन चीज़ों को हराम ? मैंने जवाब दिया कि: वो लोग फ़हश चीज़ों को हराम क़रार देते हैं, गुमराही की हर बात को और हर क़िस्म के शर और नापसंदीदा चीज़ों को हराम क़रार देते हैं | ये सुनकर बादशाह ने सवाल किया कि:
वो लोग किस चीज़ को हराम क़रार देने के बाद फ़िर उसको हलाल करते हैं या हलाल की हुई चीज़ को बाद में हराम समझते हैं ? मैंने जवाब दिया, नहीं | बल्कि उनका अक़ीदा (आस्था/ईमान) है कि उनकी शरीयत मुक़म्मल (सम्पूर्ण) है - ख़ुदा उनकी शरीयत का मुहाफ़िज़ (रक्षक) है - वो ज़मीन व आसमान से भी ज़्यादा क़ायम व साबित रहने वाली चीज़ है - उनका ये उसूल है कि ख़ुदा की नाफ़रमानी करके किसी मख्लूक़ (Creatures) की इताअत व फ़रमाबरदारी क़ुबूल करना हराम व नाजायज़ है ||
ये सारी तफ़सीलें सुनने के बाद बादशाह-ए-चीन ने कहा कि:
ये लोग कभी मिट नहीं सकते जब तक कि वो हराम को हलाल न समझने लगें और उनके नज़दीक भी नाख़ूब-ख़ूब बन जाए और भली व नेक बात को बुरी व घटिया सोचने लगें - इसके बाद बादशाह-ए-चीन ने यज्दगर्द के दूत से अरबों के लिबास के ताल्लुक़ से पूछा तो दूत ने उसको बताया कि वे कहते हैं कि सबसे अच्छा लिबास तक़वा (ईशपरायणता) और ख़ुदा का खौफ़ है-
फ़िर बादशाह ने पूछा:
उनकी सवारियां कैसी होती हैं ? दूत ने जवाब दिया अक्ल व मशवरा, उनका मशहूर जुमला है कि जिसको अपनी राय व समझ बूझ पर नाज़ हो वो मारा गया और जिसने अपनी अक्ल के घमंड में दूसरे से बेनियाज़ी बरती वो ग़लती से बचा नहीं - बादशाह ने फ़िर सवाल किया:
तुम्हे उनके आपस के मामलात व रहन-सहन के ताल्लुक़ से क्या मालूम है ? दूत कहता है मैंने बादशाह को जवाब दिया कि उनके रसूल (صلی اللّٰہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم) ने उन्हें जो तालीम व हिदायत दी है वो उसके पाबन्द होते हैं, वो ये कि उनमे से अगर कोई व्यक्ति किसी से ख़फ़ा व नाराज़ हो तो उस नाराज़गी की वजह से उस पर ज़ुल्म न करे, वो अगर किसी का दोस्त हो तो मुहब्बत की वजह से किसी गुनाह का करने वाला न हो - सुबूत मिले या न मिलें हक़ को क़ुबूल करे - कोई नेकी करना चाहे तो उसे उसमे लालच का शुबहा न हो - जब बादशाह-ए-चीन ने अरबों के ताल्लुक़ से मुक़म्मल जानकारी हासिल कर ली तो यज्दगर्द को जवाब में ख़त लिखा, जिसमे उसनेे लिखा कि:--
"अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी मदद के लिए ऐसा ज़बरदस्त लश्कर भेजूं जिसका एक सिरा तुम्हारे मुल्क "मुरु" में हो और दूसरा सिरा चीन में, मगर आपके दूत ने मुसलमानों के जो हालात बयान किये हैं, वो ऐसे हैं कि उनके सामने पहाड़ भी कम है, अगर उन्हें रास्ता मिल जाए तो उन ख़ूबियों के होते हुए जो आपके दूत ने बयान की हैं, ये लोग हमारा भी तख़्त व ताज छीन लेंगे, ये पोजिशन लश्कर भेजने के बरअक्स (विपरीत) है, उनसे आप सुलह कर लें और कोई चारा नहीं" ||
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की मोहम्मद (صلی اللّٰہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم) से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं ;
ये जहाँ चीज़ है क्या लौह-ओ-क़लम तेरे हैं !
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ये इस कौम की सुनहरी दास्ताँ है, जिसने सदियों तक इस्लाम की सदाक़त व हक्कानियत का तजुर्बा किया है - उसकी सच्चाई से अच्छी तरह वाकिफ़ है - ख़ुद उसके दुश्मनों ने उन ख़ूबियों की गवाही दी है जिनके सामने अक्ल हैरान रह जाती है - बाक़ी "हाल" की ख़बर सबको है, कोई इससे बेख़बर नहीं है , इसलिए "हाल" पर तब्सिरा करने के बजाए क़ुरआन की इस आयत के साथ बात ख़त्म ||
"अगर ख़ुदा तुम्हारा मददगार है, तुम पर कोई हावी नहीं हो सकता, और अगर वो तुम्हे छोड़ दे तो फ़िर कौन है कि तुम्हारी मदद करे ||" (क़ुरआन 3:17)

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