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यूपी पंचायत चुनाव 2020, यूपी ग्राम प्रधान इलेक्शन डेट, ग्राम प्रधान चुनाव उत्तर प्रदेश 2020 Date,

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यूपी  पंचायत चुनाव 2020, ग्राम प्रधान चुनाव उत्तर प्रदेश 2020 Date,  पंचायत चुनाव को लेकर UP GOV की ओर से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।   एक  ओर संभावित प्रत्याशी भी अभी से अपने प्रचार अभियान में लग गए हैं। तो वहीं  दूसरीतरफ वोटर लिस्ट फाइनल हो रही है ! शासन ने  जिलों में 55 तरीके के प्रपत्र पंचास्थानीय कार्यालय भेजे हैं। इसमें नामांकन से लेकर मतगणना सीट शामिल होना बताया जा रहा है। इस तैयारी से अंदेशा मिल रहा है कि जल्द ही पंचायत चुनाव की तारीख आ  सकती है । जिलों में पंचायत चुनाव के लिए मतदाता पुनरीक्षण सूची  का काम हों रहा है , जिसकी 12 नवंबर तक तैयार हो जाएगी। उसके बाद आरक्षण की तैयारी एक दो  सप्ताह के भीतर पूरी हो जाएगी। इसके लिए बीएलओ को आदेश दिए जा चुके हैं। आरक्षण  जैसे ही पुनरीक्षण मतदाता लिस्ट तैयार होगी, इसके बाद डीपीआरओ एक्ट के अनुसार गांवों में आरक्षण की रिपोर्ट GOB को भेजदी  जायेगी । यदि DPRO  द्वारा भेजी गयी सूची को शासन ने मान्यता दे दी तो चुनाव जल्द ही पुरे हो जायगे । मुरादाबाद क...

कुतुबुद्दीन ऐबक , गुलाम वंश, मामलूक सुल्तान, मूल वंश,

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कुतुबुद्दीन ऐबक कौन था कुतुबुद्दीन एेबक को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है। वह दिल्ली का प्रथम तुर्क शासक था।1206 में मुहम्मद गोरी की अचानक मृत्यु होने पर लाहौर के स्थानीय नागरिकों के अनुरोध पर सत्ता स्वीकार की।  ■सत्ता संभालने के पहले ऐबक के पास क्या जिम्मेदारी थी... ■तराइन के द्वितीय युद्ध में विजय के बाद मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन एेबक को अपने मुख्य भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया था। दरअसल मुहम्मद गोरी की कोई सन्तान नहीं थी। अपने साथ बड़ी संख्या में दास लाया था, जिन्हें उसने अपने अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया था। ■ऐबक को वास्तविक रूप से दासता से मुक्ति कब मिली...  सिंहासन पर बैठने के बावजूद कुतुबुद्दीन सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की, बल्कि मलिक और सिपहसालार की पदवियों से संतुष्ट रहा। एेबक ने न तो अपने नाम का खुतबा पढ़वाया और न ही अपने नाम के सिक्के चलवाए। 1208 में गोरी के उत्तराधिकारी गियासुद्दीन ने उसे दासता से मुक्त किया और सुल्तान घोषित किया। ■ऐबक के राज्य की राजधानी कहाँ थी  एेबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और उसके पूरे शासनकाल के दौ...

मुग़ल बादशाह बाबर, babar,

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मुग़ल  बादशाह बाबर मुग़ल बादशाह बाबर का जन्म 14 फ़रवरी 1483 को उजेबकिस्तान में हुआ था।  बादशाह    बाबर मुग़ल सल्तनत के संस्थापक और चंगेज़ खान और तैमूर के वंशज थे। तुर्की भाषा में मंगोल को मुग़ल बोलते थे , यहीं    से बाबर को मुग़ल नाम मिला था  बाबर को उनके वालिद की वफ़ात के बाद 12 साल की उम्र में ही फ़रगान घाटी का बादशाह बना दिया गया। कम उम्र का फायदा उठाते हुए उसके चाचा ने बाबर को सत्ता से बेदखल कर दिया। बाबर ने  चन्द वफादार सैनिकों के साथ समरकन्द छोड़ दिया और  फिर 7 महीने बाद दोबारा मुट्ठी भर सैनिकों के साथ   13 साल की उम्र में जंग की और  समरकंद जीत लिया।  बाबर बहुत ही बहादुर और निडर थे । वह एक्सरसाइज के वक़्त दो लोगो कंधो पर लादकर पहाड़ पर चढ़ते और उतरते थे । चन्देरी की जंग में जब उन्हें कहीं रास्ता नही मिला तो उन्होनें रातों रात पहाड़ चीर कर किला फतह कर लिया था। राणा सांगा ने  बाबर को  इब्राहिम लोधी को हटाने के लिए  निमंत्रण भेजा जिसके बाद बाबर ने इब्राहिम लोधी पर फ़तह हासिल कर ली और ...

गुलनज़ के गुनहारों को फांसी दो, Justice for gulnaz, वैशाली बिहार कांड , bihar vaishali

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Justice for gulnaz  कोन है गुलनाज के हत्यारे चंद लम्हों के लिए आँख बंद करके तसब्बुर करिये कि वैशाली बिहार की वो विक्टिम लड़की #गुलनाज की जगह गीता होती और आरोपी सतीश की जगह सलीम होता तो आज सोशल-मीडिया पर और जमीनी तौर पर मुल्क में क्या हंगामा बरपा होता? अफसोस आज बहन-बेटियों की आबरू और जान की कोई कीमत नहीं.. विक्टिम के सरनेम को, उनकी जाति और धर्म को देखकर आवाजें उठाईं और दबाईं जातीं है। सियासी इख़्तेलाफ़ ने आज लोगों में इस हद तक जहर भर दिया है कि लुटी हुई आबरू देखकर और इंसानी लाशें देखकर कहकहे लगा रहा है.. वो वक़्त दूर नहीं जब ये सियासी भेड़ें अपनी माँ-बहनों की लुटती इज्जत और बाप-भाईयों की सड़ती लाशें देखकर आँखें फेर लेंगे क्योंकि इनकी पूरी दुनिया अब सियासी अंधभक्ति बन चुकी है, जिसे धर्म की अफीम चटाकर रंगीन दिखाया जा रहा है। कातिल/बलात्कारी चाहे सतीश ही या सलीम हो वो पूरे मुआशरे के लिए खतरा है, अगर उसका नाम या मजहब देखकर सपोर्ट किया जाएगा तो यकीनन उसका अगला शिकार आपके घर मे निकलेगा.. सियासी रहनुमाओं की खूब गुलामी करिये, मगर अपने ज़मीर को कम से कम इतना तो जिंदा रखिये कि किसी मज़लूम की आबरू या ...

#मुल्क ए शाम, सिरिया ,फ़लस्तीन, उर्दन,लेबनान और आज का सीरिया, syria, filistin, urdan, lebanon

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  मुल्क ए  शाम सिरिया कभी फ़लस्तीन, उर्दन,लेबनान और आज का #सीरिया, कभी मुत्तहिद इलाका हुआ करता था,  जिसका #शिराजा पहली आलमी जंग के बाद सलीबी ताकतों  #रूस व #इंग्लैण्ड  मिल्लत के #गद्दारों और जमीर #फरोशों के साथ मिलकर बिखेर दिया ! जिस में उर्दन "शरीफ हुसैन" के औलादों के हाथ आया, फ़लस्तीन यहूदियों को मिल गया,  लेबनान सलीबी हमलों में आकर बसने वाले मोवारना के शिई शराकत में  सौंप दिया गया और मौजूदा सीरिया नसिरियों के कब्जे में दे दिया गया, यह सीरिया काफी सालों से बहार ए अरब का शिकार है मूसलमानों का मजबूत तरीन मूल्क शाम जो आज सीरिया के नाम से जाना जाता है पिछले 80 सालों से असद खान के हाथों कट और लुट रहा है, "सुलेमान अल वहशी" जिसको मिस्र के डिक्टेटर जमाल अबदूल नासिर ने सुलेमान अल असद  बना दिया था,  सुलेमान वही है जिसने शाम को फ़्रांस के हाथों बेंच दिया था, और सुलेमान का बेटा हाफ़िज अल असद जिसने इसराइल बनाने में बहुत बड़ा और अहम् रोल अदा किया,  इसी हाफ़िज अल असद के रक्षा मंन्त्री रहते हुए गोलान जैसा अजीमूसशान किला जिसको नाकाबिले तसखीर महाज जंग बनाने क...

आदतें नस्लों का पता देती है l आदत इख़लाक़ और तर्ज अमल खून और नस्ल दोनों की पहचान करा देते हैं

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आदतें नस्लों का पता देती  है , एक बादशाह के दरबार में एक अनजान आदमी नौकरी मांगने के लिए हाजिर हुआ  काबिलियत पूछी गई तो कहा सियासी हूं  (अरबी में सियासी का मतलब अफहाम  फहम  तफहीम से मसला हल करने वाले को कहते हैं ) बादशाह के पास सियासतदानों की भरमार थी उसे खास घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज बना दिया गया जिस का इंचार्ज हाल ही में इंतकाल कर गया था। कुछ रोज़ बाद बादशाह ने  उसे अपने सबसे महंगे  प्यारे घोड़े के बारे में पूछा उसकी चाल ढाल हक़ीक़त उसने कहा कि घोड़ा नस्ली नही है।  बादशाह को हैरत हुई उसने जंगल से घोड़े वाले को बुलवाया जिस से लिया था उस से पूछा क्या यह बातें सच है उसने बताया घोड़ा नस्ली है लेकिन इसकी पैदाइश पर इसकी माँ मर गई थी यह एक गाय का दूध पीकर उस के साथ पला बढ़ा है। अस्तबल के इंचार्ज को बुलाया गया। बादशाह ने सवाल किया तुम्हें कैसे पता चला यह घोड़ा नस्ली नहीं है उसने कहा जब यह घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके जबकि नस्ली घोड़ा घास मुंह में लेकर सर उठा लेता है।  बादशाह उसकी अकल सोच से बहुत खुश हुआ  उसके घर अनाज  भुने हुए दुंबे औ...

तुम्हारी हर नस्ल को उमर मुख्तार मिलेगा

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 तुम्हारी हर नस्ल को उमर मुख्तार मिलेगा उमर मुख्तार लीबिया पर इटली के कब्जे के खिलाफ तहरीक मजाहमत के मारूफ रहनुमा थे    वह 1862 ई में जंज़ोर नामी गांव में पैदा हुए उन्होंने 1912 में लीबिया पर इटली के कब्जे के खिलाफ अगले 20 साल तक तहरीक मजाहमत की कयादत की अक्टूबर 1911 में इटली के समुद्री जहाज लीबिया के साहिलों पर पहुंचे इटली बेड़े के लीडर फारा फेली ने मुतालबा किया कि लीबिया हथियार डाल दे अगर नहीं डालते हैं तो और  भी शहर तबाह करदिया जायेगा, हालांकि लीबियाई नागरिकों ने शहर खाली कर दिया लेकिन इटली ने हर सूरत में हमला करना था और उन्होंने 3 दिन तक त्राबल्स पर बमबारी की और उस पर कब्ज़ा कर लिया यहीं से इटली काबिज फौजों और उमर मुख्तार के लीडरशिप में लीबियाई फौजियों के दरमियान जंगों का सिलसिला शुरु हुआ उमर मुख्तार जो हाफिज ए कुरान है सहराई इलाकों से बखूबी वाकिफ थे और वहां लड़ने की हिकमत अमली  को भी खूब समझते थे उन्होंने इलाकाई  जुगराफिया के बारे में अपनी मालूमात का इटली फौजियों के खिलाफ भरपूर फायदा उठाया वह अक्सर  छोटी-छोटी टोलियों में इटली फौज पर हमले करते ...

वो कौन से सहाबी है जो खौफ़े खुदा से इतना रोया करते थे कि आप के चेहरे पर आंसूओं के बहने की वज्ह से दो सियाह निशान पड़ गए, हज़रते उमर , islamic stories

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वो कौन से सहाबी है जो खौफ़े खुदा से इतना रोया करते थे कि आप के चेहरे पर आंसूओं के बहने की वज्ह से दो सियाह निशान पड़ गए   जवाब   हज़रते उमर    तफ्सील  हज़रते उमर  जब कुरआने मजीद की कोई आयत सुनते तो खौफ़ से बेहोश हो जाते, एक दिन एक तिन्का हाथ में ले कर कहा : काश ! मैं एक तिन्का होता ! कोई काबिले जिक्र चीज़ न होता! काश मुझे मेरी मां न जनती ! और खौफ़े खुदा से आप इतना रोया करते थे कि आप के चेहरे पर आंसूओं के बहने की वज्ह से दो सियाह निशान पड़ गए थे।*   हुजूर  ने फ़रमाया :  तर्जमा : जो शख़्स खौफ़े खुदा से रोता है वोह जहन्नम में हरगिज़ दाखिल नहीं होगा इसी तरह जैसे कि दूध दोबारा अपने थनों में नहीं जाता। 'दकाइकुल अख्बार' में है कि क़ियामत के दिन एक शख्स को ला .तर्जमए कन्ज़ुल ईमान : तो लोगों से खौफ़ न करो और मुझ से डरो  या जाएगा, जब उस के आ'माल तोले जाएंगे तो बुराइयों का पलड़ा भारी हो जाएगा चुनान्चे, उसे जहन्नम में डालने का हुक्म मिलेगा, उस वक्त उस की पलकों का एक बाल अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करेगा कि ऐ रब्बे जुल जलाल ! तेरे रसूल ﷺ ने ...

अजरबैजान ने जीता Nagorno-Karabakh, रूस ने युद्ध को कराया समाप्त, armenia-azerbaijanc, nagorno karabakh , islamic stories hindi

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अजरबैजान ने Nagorno-Karabakh जीता l रूस की मध्यस्थता में हुआ समझौता पिछले 6 हफ़्तों से चले भयंकर लड़ाई के बाद armenia-azerbaijan और रूस ने मंगलवार nagorno karabakh क्षेत्र में  एक समझौते पर हस्ताक्षर कर लिए है,रूस के साथ हुए समझौते के बाद आर्मेनिया और अजरबैजान ने मंगलवार तड़के अजरबैजान सीमा में मौजूद नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र में युद्ध रोकने का एलान किया l मीडिया पर पोस्ट लिखते हुए आर्मनिया प्रधानमंत्री निकोलस पशियन ने  इसे अकथनीय रूप से दर्दनाक बताया है l इस क्षेत्र में समझौते के तहत  करीब 2,000 रूसी शांति रक्षक तैनात होंगे। इस समझौते के तहत पशियन ने कहा कि मंगलवार को दोपहर 1 बजे से इस सघर्ष को समाप्त किया जाता है जिसमे 1000 से ज्यादा लोग मा’रे जा चुके है । ऑनलाइन बैठक में azerbaijan के राष्ट्रपति इलहाम आलियेव ने रूसी राष्ट्रपति से कहा कि हस्ता’क्षरित त्रिपक्षीय बयान संघर्ष के निपटारे में एक महत्वपूर्ण बिंदु बन जायेगा । नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र 1994 में अलगाववादी संघर्ष छिड़ने के बाद से ही आर्मेनिया समर्थित जातीय बलों के नियंत्रण में है और इस युद्ध में अब तक करीब 30,000 ...

जब बादशाह यज्दगर्द ने चीनी बादशाह के पास अपना दूत भेजा और उससे अरबों के ख़िलाफ़ मदद मांगी , islamic stories in hindi

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जब मुसलमानों ने किसरा के शहरों को जीता और अरब के बहादुरों ने अजम की ज़मीन पर क़दम रखा तो उनके बादशाह यज्दगर्द ने चीनी बादशाह के पास अपना दूत भेजा और उससे अरबों के ख़िलाफ़ मदद मांगी     - उस वक़्त बादशाहों का ये दस्तूर था कि नाज़ुक मौक़े पर एक बादशाह दूसरे बादशाह की मदद करता था - यज्दगर्द का ये दूत जब चीन से वापिस हुआ तो हदिया व तोहफ़ों से लदा-फंदा वापिस हुआ और यज्दगर्द से कहा कि बादशाह-ए-चीन ने मुझसे उन लोगों के हालात पूछे जो हमारे मुल्क पर कब्ज़ा किए हुए हैं, जब मैंने उनको तफ़सील (डिटेल) बताई तो उसने कहा--                "तुम उनकी तादाद कम और अपनी ज़्यादा बताते हो, इतनी कम तादाद इतनी ज़्यादा तादाद पर उसी वक़्त हावी हो सकती है जब उनमे खूबियाँ हों और तुममे बुराइयाँ और ख़राबियाँ हों |"   मैंने अर्ज़ किया आप और कुछ पूछना चाहें तो पूछें, मै आपको बताऊंगा | तब बादशाह-ए-चीन ने पूछा कि:                क्या वो वादा करने के बाद वादा पूरा करते हैं ? मैंने कहा, जी हाँ | फ़िर उसने पूछा अपने सरदारों (ल...

मोहम्मद बिन कासिम, वो ख़त जिसको पढ़कर मुहम्मद बिन क़ासिम ने 17 साल की उम्र में, हिन्द व सिंध के ज़ालिम हुक्मरानों को रौंद डाला… islamic stories in hindi

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मोहम्मद बिन कासिम  वो ख़त जिसको पढ़कर मुहम्मद बिन क़ासिम ने 17 साल की उम्र में, हिन्द व सिंध के ज़ालिम हुक्मरानों को रौंद डाला… यह ख़त अबुल हसन की बेटी नाहिद ने सिंध से एक सफेद रुमाल पर अपने खून से हज्जाज़ बिन यूसुफ के लिए लिखा था, और क़ासिद से कहा था… “अगर हज्जाज बिन युसुफ़ का खून मुंजमद हो गया हो तो मेरा ये खत पेश कर देना वरना इसकी जरूरत नहीं है। हज्जाज़ बिन यूसुफ ने खत के चंद सुतूर पढ़कर कंपकपा उठा, और उसकी आंखों के शोले पानी में तब्दील होने लगे, उसने रुमाल मुहम्मद बिन क़ासिम के हाथों में दे दिया, मुहम्मद बिन कासिम ने शुरू से लेकर आखिर तक लिखे अल्फ़ाज़ पढ़ा उसमे लिखा था…… “मुझे यक़ीन है कि वालि-ए-बसरा क़ासिद की ज़बानी मुसलमान बच्चों और औरतों का हाल सुनकर अपनी फ़ौज के गय्यूर सिपाहियों को घोड़ों पर ज़िनें डालने का हुक्म दे चुका होगा, और क़ासिद को मेरा ये खत दिखाने की जरूरत पेश नहीं आएगी, अगर हज्जाज बिन युसुफ़ का खून मुंजमद हो चुका है तो शायद मेरी तहरीर भी बेसूद साबित हो, मैं अबुल हसन की बेटी हूं मैं और मेरा भाई अभी तक दुश्मन के दस्तरस से महफूज़ हैं, लेकिन हमारे साथी एक ऐसे दुश्मन की कैद में है जिसके...

पानीपत की दूसरी जंग, अकबर और हेमू के बीच 5 नवम्बर 1556 को लड़ी गयी, mughal saltanat, islamic stories in hindi

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  पानीपत की दूसरी जंग इसी महीने 5 नवम्बर 1556 को मुग़ल बादशाह अकबर और हेमू के बीच लड़ी गयी थी बात शुरू होती है 23 जुलाई 1555 को, मुग़ल सेना ने सिकन्दर शाह सूरी पर हमला कर के दिल्ली और आगरा को वापस अपने कब्जे में ले लिया था। सिकन्दर शाह सूरी में अपने पूर्वज शेरशाह सूरी जैसी क़ाबलियत नही थी सूर सल्तनत सेनापति हेमू सम्भलता था जो कि शेर शाह सूरी का खास दोस्त था। हेमू एक तेज़ तर्रार कमांडर था एक एक कर सारे राज्य फ़तह करता गया बंगाल से शुरू किया और इटावा बदायूं सम्भल फ़तह करते हुए मुग़लों तक दिल्ली के तुगलकाबाद पहुंच गया। 7 अक्टूबर 1555 को यहां उसकी जंग मुग़ल सूबेदार तरगी बेग खान से हुई बेग खान को तुगलकाबाद छोड़ना पड़ा। हेमू ने खुद को दिल्ली का राजा घोषित कर दिया। इसी वजह से हेमू को दिल्ली का आखरी हिन्दू राजा भी कहते है हालांकि हेमू दिल्ली की सत्ता पर पर कुछ दिन ही बैठ पाए ये खबर मुग़ल दरबार तक पहुचीं अक़बर की उम्र उस वक्त बहुत कम थी सेनापति बैरम खान ने फौरन जंग की तैयारी शुरु कर दी। हेमू की सेना से मुकाबला आसान नही था हेमू के पास 30 हज़ार सैनिक 500 हाथी और सैकड़ो अफ़ग़ान घुड़सवार थे। 5 नवम्बर को पानीपत म...

सलाहुद्दीन अय्यूबी, बेतुल मुकद्दस की फतेह उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश थी, islamic stories in hindi

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सलाहुद्दीन अय्यूबी पूरा नाम      : सलाहुद्दीन यूसुफ बिन अय्यूबी खानदान      : अय्यूबी बाप का नाम : नजमुद्दीन अय्यूब पैदाइश       : तिकरित इराक़ 1137 ई , 1138 ई वफात         : मार्च 1193 ई दमिश्क़ सीरिया दफ़न          : मस्जिद उमैय्या, दमिश्क़ शाम (सीरिया) मज़हब         : इस्लाम नस्ल से        : कूर्द थे जब सलाहुद्दीन अय्यूबी रहमुल्लाह  छोटे थे और पड़ोस के बच्चों के साथ खेल रहे थे तो उनके वालिद आये  और उन्हें  ऊँचा उठाकर  कहा मैंने तुम्हारी माँ से इस लिए शादी नहीँ की  और ना ही तुम्हारी माँ ने तुम्हें इस लिए पैदा किया कि तुम  बच्चों के साथ खेल कूद में मशगूल रहो बल्कि मैंने तुम्हारी माँ से शादी  और उसने तुम्हें इस लिए पैदा किया ताकि तुम बैतुल मुक़द्दस  को आज़ाद कराओ, फिंर ऊपर से ही छोड़ जिस से सलाहुद्दीन  अय्यूबी ज़मीन पर गिर गये और उन्हें चोट लग गई , बाप ने पूछा  चोट लगी दर्द हो रहा है उन्होंने  कहा हा...

मुग़ल बादशाह औरंगजेब, 3 नवंबर 1618 को पैदा हुए। औरंगजेब का जन्म कब ओर कहां हुआ था , islamic stories in hindi

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मुग़ल बादशाह औरंगजेब आज ही के दिन 3 नवंबर 1618 को गुजरात के दाहोद में पैदा हुए। मुग़ल बादशाह औरंगजेब आज ही के दिन 3 नवंबर 1618 को गुजरात के दाहोद में पैदा हुए। शाहजहां और मुमताज़ के तीसरे बेटे थे औरंगजेब, पैदाइश के वक़्त शाहजहां बादशाह नही थे वो एक सूबेदार के ओहदे पर मिलिट्री कैम्पेन में मशगूल रहते थे इस वजह से औरंगजेब की परवरिश दादी नूरजहां के पास लाहौर में हुई। 26 मई 1628 को शाहजहां बादशाह बने तो औरंगजेब आगरा के किले में आ गए और यही पर अरबी और फ़ारसी की तामील मुक़म्मल हुई, औरंगजेब हाफ़िज़ ए क़ुरआन और मुहद्दिस भी थे। अपने तीनो भाइयो में सबसे तेज़ और कुशल योद्धा थे। 28 मई 1633 को हाथियों की लड़ाई के दौरान पागल हाथी के बीच औरंगजेब फस गए थे तब खुद ही औरंगजेब ने अपनी जान बचाई थी हाथी के सूंड के सहारे चढ़कर भाले से ज़ोरदार वार कर मार गिराया था। वहाँ उनके भाई मौज़ूद थे लेकिन औरंगजेब को बचाने की कोशिश नही की औरंगजेब ने इसके बाद कहा: "अगर ये हाथी आज मुझे मार भी देता तो भी कोई ज़िल्लत की बात नही थी मौत बरहक़ है एक दिन ये ज़िंदगी पर पर्दा डाल ही देगी मेरे भी और एक बादशाह पर भी। लेकिन आज मेरे भाइयों ने मेरे...